UP Crime History : पहले 90 के दशक में उत्तर प्रदेश की सड़कों पर कदम रखते ही जिस नाम का खौफ लोगों की धड़कनें बढ़ा देता था, आज उस अध्याय को अपराध जगत की सबसे खतरनाक कहानियों में गिना जाता है. उम्र सिर्फ 24 साल… लेकिन इतनी कि पूरी यूपी पुलिस उसकी परछाई से डरती थी. वह सिर्फ अपराधी नहीं था, बल्कि वह डॉन जिसे खत्म करने के लिए राज्य में पहली बार स्पेशल टास्क फोर्स (STF) का जन्म हुआ.
उसका नाम था — श्रीप्रकाश शुक्ला.
कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला, जो अपराध की दुनिया में ‘खौफ’ बन गया
6 अक्टूबर 1973 को गोरखपुर में जन्मे श्री प्रकाश शुक्ला का बचपन आम छात्रों जैसा था. पढ़ाई, खेलकूद, ब्रांडेड कपड़े और बंदूकों का शौक — इन्हीं के बीच उसकी जिंदगी चल रही थी. कहा जाता है कि दिखने में स्मार्ट और स्टाइलिश यह युवक यूनिवर्सिटी तक पहुंचने से पहले ही जुर्म की दुनिया में उतर चुका था.
साल 1993 में पहला बड़ा अपराध — राकेश तिवारी की हत्या, जो उसके अनुसार बहन की छेड़छाड़ का बदला था. बस वहीं से उसकी कहानी बदल गई… पुलिस फाइलों में नाम जुड़ा और जंगल राज का नया चेहरा उभरकर सामने आया.
कहते हैं कि बिहार और यूपी के बीच उसकी दहशत की सीमा ऐसी थी कि गांवों-कस्बों में लोग उसका नाम लेने से भी डरते थे. उसके पास हर वक्त AK-47 रहती थी, और उसके गिरोह में 2–3 से ज्यादा सदस्य कभी नहीं — ताकि राज पुलिस की पहुंच से दूर रहे.
6 करोड़ में सीएम की सुपारी — डर वहीं खत्म हुआ, जहां सरकार की नींद उड़ी
90 के दशक में उत्तर प्रदेश का अपराध जगत अपने चरम पर था. अपहरण, रंगदारी और उगाही के मामलों में उसका नाम फ़ाइलों में सबसे ऊपर दर्ज होता था. कहते हैं कि जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और अपराध जगत पर नकेल कसना शुरू किया, तो शुक्ला के मंसूबों पर चोट पड़ी.
इसी दौरान उसने 6 करोड़ रुपये में तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली — और यहीं से मामला राज्य सुरक्षा के दायरे से निकलकर राष्ट्रीय खतरे में बदल गया.
सीएम के पास जब यह इनपुट पहुंचा, तभी उत्तर प्रदेश में पहली बार स्पेशल टास्क फोर्स (UP STF) की नींव रखी गई. ऑपरेशन सिर्फ उसके अंत के लिए शुरू हुआ — और अब पुलिस भी जानती थी कि यह उनका सबसे कठिन मिशन होने वाला है.
आखिरकार खात्मा — लेकिन अब तक का सबसे खर्चीला एनकाउंटर
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार श्री प्रकाश शुक्ला तक पहुंचने के लिए चलाया गया अभियान बेहद महंगा और लंबा था — करीब एक करोड़ रुपये खर्च होने की बात सामने आती है. उसका लो-प्रोफाइल गैंग स्ट्रक्चर, हर बार लोकेशन बदलना और सिक्योरिटी मेकैनिज़्म पुलिस के लिए पहेली बना हुआ था.
सितंबर 1998 — वह दिल्ली में बीजेपी नेता साक्षी महाराज पर हमले की तैयारी में था. तभी STF की सटीक ट्रैकिंग शुरू हुई.
23 सितंबर 1998 — गाजियाबाद में स्पेशल टास्क फोर्स ने मुठभेड़ में उसे ढेर कर दिया.
इसके साथ समाप्त हुई उस बाहुबली की कहानी जिसने अपनी छोटी उम्र में अपराध के इतिहास को सबसे काली इबारत दी.
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