Currency Crisis: देश में 10, 20 और 50 रुपये के नोटों की किल्लत ने आम जनता और छोटे व्यापारियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अखिल भारतीय रिज़र्व बैंक कर्मचारी संघ (एआईआरबीईए) ने इस स्थिति को लेकर आरबीआई के उच्च अधिकारियों को गंभीर चिंता जताई है. संघ का कहना है कि देश के कई हिस्सों से छोटे मूल्य वाले नोट लगभग गायब हो चुके हैं, जिससे दैनिक लेन-देन में कठिनाई पैदा हो रही है.
छोटे नोटों की कमी का असर
रोजमर्रा के खर्चों में यह समस्या खास तौर पर कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा महसूस की जा रही है. स्थानीय परिवहन, किराना और सब्जी की खरीदारी में दुकानदार और ग्राहक दोनों ही परेशान हैं. छोटे दुकानदारों के पास पर्याप्त छुट्टे न होने के कारण अक्सर लेन-देन में विवाद उत्पन्न हो रहे हैं.
एटीएम और बैंक शाखाओं की स्थिति
कर्मचारी संघ ने बताया कि अधिकांश एटीएम से केवल उच्च मूल्य के नोट ही निकल रहे हैं. 200 या 500 रुपये के नोट आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन 10, 20 और 50 रुपये के नोट न के बराबर हैं. इसी प्रकार, बैंकों की शाखाएं भी छोटे नोट उपलब्ध कराने में असमर्थ दिख रही हैं, जिससे नकद लेन-देन करने वालों की समस्याएं और बढ़ रही हैं.
डिजिटल भुगतान समाधान नहीं
संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि डिजिटल भुगतान का प्रचार होने के बावजूद यह समस्या का पूरा समाधान नहीं है. देश की एक बड़ी आबादी आज भी छोटे खर्चों के लिए नकद पर निर्भर है. ग्रामीण इलाकों, बुजुर्गों और छोटे व्यापारियों के लिए डिजिटल भुगतान हर जगह व्यवहारिक विकल्प नहीं बन पाया है.
मुद्रा प्रबंधन पर उठते सवाल
एआईआरबीईए ने यह तथ्य भी उजागर किया कि डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद देश में कुल मुद्रा लगातार बढ़ रही है. इसके बावजूद छोटे मूल्य वाले नोट बाजार में नहीं आ रहे हैं, जिससे मुद्रा प्रबंधन और वितरण की प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं.
सिक्कों से भी राहत नहीं
छोटे नोटों की कमी को पूरा करने के लिए सिक्कों का इस्तेमाल बढ़ाने की कोशिशें की गईं, लेकिन पर्याप्त सिक्कों की उपलब्धता न होने और लोगों की सीमित स्वीकार्यता की वजह से यह प्रयास सफल नहीं हो पाया. छोटे लेन-देन की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं.
आरबीआई से तत्काल हस्तक्षेप की मांग
अखिल भारतीय रिज़र्व बैंक कर्मचारी संघ ने आरबीआई से मांग की है कि वाणिज्यिक बैंकों और आरबीआई काउंटरों के माध्यम से छोटे नोटों का पर्याप्त वितरण सुनिश्चित किया जाए. एटीएम में भी छोटे मूल्य वाले नोट शामिल किए जाएं. इसके साथ ही संघ ने ‘कॉइन मेला’ दोबारा आयोजित करने का सुझाव दिया है, ताकि पंचायतों, सहकारी संस्थाओं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से सिक्कों और छोटे नोटों का व्यापक प्रचलन सुनिश्चित किया जा सके.
आम आदमी के लिए राहत की उम्मीद
छोटे नोटों की किल्लत ने यह साफ कर दिया है कि नकद अर्थव्यवस्था आज भी आम आदमी और छोटे कारोबारियों के लिए आवश्यक है. अब देखना यह है कि आरबीआई और बैंकिंग सिस्टम इस संकट से निपटने के लिए कितनी जल्दी ठोस कदम उठाते हैं, ताकि आम जनता और छोटे व्यापारी राहत महसूस कर सकें.
भाषा इनपुट के साथ
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