Chanakya Niti : रिश्तों में विश्वास, सहयोग और मदद को हमेशा एक सकारात्मक गुण माना गया है. लेकिन बहुत से लोगों की यह शिकायत रहती है कि वे जितनी निष्ठा से किसी का साथ देते हैं, बदले में उन्हें धोखा ही मिलता है. यह समस्या केवल आज के समय की नहीं है, बल्कि प्राचीन काल में भी समाज इसी मानसिकता से जूझ रहा था. आचार्य चाणक्य ने मानव स्वभाव और रिश्तों की इसी जटिलता को लेकर अपनी नीति में गहरी बातें कही हैं, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक मानी जाती हैं.
स्वार्थ के चश्मे से देखी जाती है अच्छाई
चाणक्य नीति के अनुसार, अधिकांश लोग किसी की अच्छाई को भावना के स्तर पर नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ और लाभ के नजरिये से देखते हैं. जब तक किसी व्यक्ति को आपसे लाभ मिलता रहता है, तब तक वह आपके प्रति अच्छा व्यवहार करता है. लेकिन जैसे ही उसका स्वार्थ पूरा हो जाता है या वह आपको कमजोर समझने लगता है, व्यवहार बदल जाता है.
चाणक्य का मानना है कि अत्यधिक उपकार करने वाला व्यक्ति कई बार सम्मान के बजाय उपेक्षा का पात्र बन जाता है.
अच्छाई को कमजोरी मानने की भूल
चाणक्य नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि बार-बार बिना सीमा के मदद करना लोगों के मन में गलत धारणा पैदा कर देता है. उन्हें लगने लगता है कि आप हर परिस्थिति में उपलब्ध रहेंगे और विरोध नहीं करेंगे. धीरे-धीरे आपकी उदारता को आपकी कमजोरी समझ लिया जाता है. यही कारण है कि कई बार सबसे अधिक चोट वही लोग पहुंचाते हैं, जिनके लिए व्यक्ति ने सबसे ज्यादा त्याग किया होता है.
सम्मान और भय का संतुलन जरूरी
चाणक्य कहते हैं कि समाज में केवल अच्छा होना पर्याप्त नहीं है. व्यक्ति के भीतर सम्मान के साथ-साथ अपनी सीमाओं को लेकर एक स्वाभाविक भय भी होना चाहिए. जहां केवल दया होती है और आत्मसम्मान नहीं, वहां लोग फायदा उठाने से पीछे नहीं हटते.
चाणक्य नीति यह सिखाती है कि न तो व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा कठोर होना चाहिए और न ही अत्यधिक नरम. संतुलन ही जीवन और रिश्तों की कुंजी है.
हर मुस्कान पर भरोसा नहीं
चाणक्य नीति में यह चेतावनी भी दी गई है कि हर मुस्कुराता चेहरा आपका शुभचिंतक नहीं होता. कई लोग आपकी अच्छाई को केवल अपने लाभ के साधन के रूप में देखते हैं. ऐसे लोगों को समय रहते पहचानना और उनसे दूरी बनाना ही समझदारी मानी जाती है.
आज के समय में भी प्रासंगिक
हजारों वर्ष पहले कही गई चाणक्य की ये बातें आज के सामाजिक और व्यक्तिगत रिश्तों में भी साफ नजर आती हैं. चाणक्य नीति यह संदेश देती है कि इंसान को मददगार जरूर होना चाहिए, लेकिन आत्मसम्मान और विवेक के साथ. तभी रिश्तों में संतुलन बना रहता है और धोखे की आशंका कम होती है.
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