Bihar Politics : बिहार विधानसभा चुनाव के बाद महागठबंधन के अंदर चल रही खामोशी अब टूटती दिख रही है. चुनावी अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने के बाद गठबंधन में शामिल दलों के बीच आपसी नाराजगी सामने आने लगी है. खासकर राजद और कांग्रेस के नेताओं के हालिया बयानों ने यह संकेत दे दिया है कि अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा.
राजद का तीखा रुख, कांग्रेस पर सीधा हमला
राजद की ओर से प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कांग्रेस को लेकर कड़ा रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि बिहार में कांग्रेस की चुनावी मौजूदगी राजद के समर्थन के बिना संभव नहीं है. उनके मुताबिक, कांग्रेस को जो भी जनसमर्थन मिलता है, वह राजद के आधार वोट के कारण ही होता है. तिवारी ने यह भी कहा कि जिनके पास खुद की जमीन नहीं है, वे आज राजद को राजनीतिक नसीहत देने में लगे हैं.
जनाधार घटने पर उठाए सवाल
राजद प्रवक्ता ने कांग्रेस की राष्ट्रीय स्थिति पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि एक राष्ट्रीय पार्टी होते हुए भी कांग्रेस लगातार अपना जनसमर्थन क्यों खो रही है, इस पर उसे गंभीर मंथन करना चाहिए. तिवारी के अनुसार, बिहार में सबसे मजबूत राजनीतिक पकड़ राजद की है और गठबंधन में रहते हुए पार्टी ने कई बार समझौता और त्याग किया है, ताकि सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखा जा सके.
कांग्रेस की नाराजगी पहले ही आ चुकी थी सामने
इससे एक दिन पहले कांग्रेस नेता शकील अहमद ने महागठबंधन के भविष्य को लेकर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि बिहार में अब महागठबंधन नाम की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं बची है. शकील अहमद का मानना था कि राजद के साथ गठबंधन में रहने से कांग्रेस को न तो संगठन मजबूत करने का मौका मिला और न ही चुनावी तौर पर कोई खास फायदा हुआ.
“गठबंधन बोझ बन चुका है”
कांग्रेस नेता ने यहां तक कह दिया था कि अगर किसी राजनीतिक साझेदारी से न तो संगठन को ताकत मिले और न ही चुनावी लाभ, तो ऐसे गठबंधन को ढोने का कोई तुक नहीं बनता. उनके इस बयान ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी और राजद की प्रतिक्रिया भी इसी का नतीजा मानी जा रही है.
क्या बिखर जाएगा महागठबंधन?
राजद और कांग्रेस के नेताओं के तीखे बयानों के बाद बिहार की राजनीति में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या आने वाले समय में महागठबंधन टूट सकता है. उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में मतभेद सामने आए थे, हालांकि बाद में सहमति बनाकर चुनाव लड़ा गया था.
सियासी तस्वीर अभी धुंधली
फिलहाल दोनों दलों के बीच बयानबाजी ने यह साफ कर दिया है कि महागठबंधन के भीतर तनाव गहराता जा रहा है. आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि यह टकराव सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहता है या फिर बिहार की राजनीति किसी बड़े बदलाव की ओर बढ़ती है.
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