Beijing Model Air Pollution: दिल्ली की हवा एक बार फिर दमघोंटू हालात में पहुंच चुकी है. सर्दी बढ़ते ही स्मॉग की परत, आंखों में जलन और सांस की तकलीफ आम हो गई है. इसी बीच चीन ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया है कि कैसे कभी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहा बीजिंग आज अपेक्षाकृत साफ हवा की मिसाल बन सका. सवाल यह है कि क्या बीजिंग का मॉडल दिल्ली और भारत के लिए कारगर हो सकता है.
दिल्ली-NCR में प्रदूषण की मौजूदा तस्वीर
दिल्ली-NCR में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) एक बार फिर खतरनाक दायरे में है. कई इलाकों में AQI 400 के पार पहुंच चुका है, जिसे ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा जाता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक कुछ क्षेत्रों में हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं. इंडिया गेट, सराय काले खां जैसे इलाकों में भी हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ के बीच झूलती दिखी. कुल मिलाकर, राजधानी की हवा अब भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनी हुई है.
चीन के दूतावास का संदेश और बीजिंग का उदाहरण
How did Beijing tackle air pollution? 🌏💨
— Yu Jing (@ChinaSpox_India) December 16, 2025
Step 1: Vehicle emissions control 🚗⚡
🔹 Adopt ultra-strict regulations like China 6NI (on par with Euro 6)
🔹 Phase-out retired old, high-emission vehicles
🔹 Curb car growth via license-plate lotteries and odd-even / weekday driving… pic.twitter.com/E0cFp4wgsV
इसी बीच भारत में चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट के जरिए वायु प्रदूषण पर चीन के अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा कि तेज शहरीकरण के चलते चीन और भारत दोनों को इस समस्या का सामना करना पड़ा, लेकिन पिछले एक दशक में चीन ने लगातार प्रयास कर हालात में बड़ा सुधार किया है. इसी कड़ी में उन्होंने बीजिंग का उदाहरण देते हुए बताया कि वाहन प्रदूषण पर काबू पाने के लिए वहां किस तरह सख्त फैसले लिए गए.
बीजिंग ने प्रदूषण घटाने के लिए अपनाए 6 बड़े फॉर्मूले
बीजिंग में सबसे पहले वाहनों से निकलने वाले धुएं पर कड़ी कार्रवाई की गई. चीन ने China-6 जैसे सख्त उत्सर्जन मानक लागू किए, जो यूरोप के Euro-6 के बराबर हैं. पुराने और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से सड़कों से हटाया गया.
कारों की संख्या नियंत्रित करने के लिए लाइसेंस प्लेट लॉटरी, ऑड-ईवन और वीकडे ड्राइविंग जैसे नियम लागू किए गए. लोगों को निजी गाड़ियों से दूर रखने के लिए मेट्रो और बस नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया गया, जो आज दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक परिवहन तंत्रों में गिना जाता है.
इसके साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया. बीजिंग ने तियानजिन और हेबेई क्षेत्र के साथ मिलकर क्षेत्रीय स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण की साझा रणनीति अपनाई. चीन का साफ कहना है कि साफ हवा एक दिन में नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए लगातार और सख्त कोशिश जरूरी है.
जब बीजिंग ने माना कि हालात हाथ से निकल चुके हैं
बीजिंग में बदलाव की नींव 2008 ओलंपिक से पहले पड़ी, जब अस्थायी आपात कदम उठाए गए और वायु गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाई गई. 2013 में सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया कि प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है. इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा एक्शन प्लान लाया गया, जिसमें PM2.5 को घटाने के लिए कानूनी लक्ष्य तय किए गए.
2013–2017 का एक्शन प्लान और भारी निवेश
2013 से 2017 के बीच चीन ने परिवहन, उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र पर एक साथ काम किया. सार्वजनिक परिवहन को इलेक्ट्रिक बनाने की दिशा में बड़े कदम उठाए गए. शेनझेन दुनिया का पहला शहर बना, जहां पूरी बस सेवा इलेक्ट्रिक कर दी गई.
पुरानी डीजल गाड़ियों और ट्रकों पर सख्त पाबंदियां लगीं, उद्योगों में प्रदूषण फैलाने वाले पुराने प्लांट बंद या अपग्रेड किए गए. कोयले की जगह गैस और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा मिला.
बीजिंग ने साफ हवा के लिए भारी निवेश किया. जहां 2013 में इस पर करीब 45 करोड़ डॉलर खर्च हुए, वहीं 2017 तक यह आंकड़ा 2.5 अरब डॉलर से ज्यादा पहुंच गया. नतीजा यह रहा कि भारी प्रदूषण वाले दिनों की संख्या में तेज गिरावट आई और PM2.5 का स्तर लगातार घटता गया.
‘वॉर ऑन पॉल्यूशन’ से भारत के लिए क्या संकेत.
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार 2014 से 2022 के बीच चीन के शहरों में PM2.5 में तेज गिरावट दर्ज की गई और आज करीब तीन-चौथाई चीनी शहर राष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हैं. हालांकि यह भी सच है कि कुछ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग दूसरे क्षेत्रों में शिफ्ट हो गए, जिससे वहां नई चुनौतियां पैदा हुईं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का मॉडल सख्त कानून, कड़े अमल और क्षेत्रीय सहयोग का नतीजा है. दिल्ली में फिलहाल GRAP-4 जैसे कदम लागू हैं, लेकिन हालात अब भी पूरी तरह काबू में नहीं हैं. असली सवाल यही है कि क्या भारत भी बीजिंग की तरह लंबी और लगातार लड़ाई लड़ने को तैयार है, या फिर हर साल स्मॉग के बाद तात्कालिक उपायों तक ही सीमित रहेगा.
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